
Fatty Liver Ayurvedic Medicine :- क्या आप जानते हैं कि त्वचा के बाद लिवर हमारे शरीर की सबसे बड़ा अंग या ग्रंथि है। अगर आपका लिवर ठीक से काम नहीं कर रहा है, तो आपको कई बीमारियों का सामना करना पड़ सकता है। अधिकतर लीवर रोगों का सबसे पहला लक्षण पीलिया के रूप में सामने आता है।
लिवर रोगों के सबसे सामान्य कारणो में अत्याधिक दर्दनाशक दवाओं का सेवन एवं भोजन के जरिए रसायनों का शरीर में जाना शामिल है।
Livomate में 4 औषधियाँ कुटकी, चिरायता, भृंगराज और मुलेठी हैं । Ayurved के अनुसार ये चारों औषधियाँ लिवर रोगों में बहुत सहायक हैं और लिवर की रोगों को जड़ से खत्म करने की क्षमता रखती हैं।
कुटकी का उपयोग भारत, ग्रीस और अरब में विभिन्न औषधीय संस्कृतियों में कई शताब्दियों से किया गया है। कुटकी पारंपरिक रूप से एक हेपेटोप्रोटेक्टिव, एंटीस्टेमेटिक, इम्युनोमोड्यूलेटर और एंटी-इंफ्लेमेटरी (hepatoprotective, anti-asthmatic, immunomodulator and anti-inflammatory) के रूप में उपयोग की जाती है।
रिसर्च के अनुसार कुटकी में लीवर की कोशिकाओं को स्वस्थ रखने का गुण पाया जाता है। कुटकी का सेवन कब्ज को दूर करने में सहायक होता है, क्योंकि आयुर्वेद के अनुसार कुटकी में भेदन का गुण पाया जाता है जो कि कब्ज को दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है। कड़वे स्वाद वाली कटुकी भूख बढ़ाती है और इसकी कम खुराक लेने पर ये रेचक (मल त्याग की क्रिया नियंत्रित करना) के रूप में कार्य करती है। अधिक खुराक लेने पर ये मलेरिया जैसे रोगों को दोबारा होने से रोकती है।
कुटकी लीवर को हेपेटाइटिस वायरस से होने वाले नुकसान से बचाता है। यह पित्त के प्रवाह को बढ़ाता है और लक्षणों जैसे कि मुंह में खट्टा या कड़वा स्वाद, अम्लता और मतली आदि को कम करता है। इसका उपयोग यकृत की क्षति, सिरोसिस और जिगर की सूजन के सभी रूपों में किया जाता है।
इसके अंदर अनेक प्रकार के एंटी-ऑक्सिडेंट्स जैसे- फ्लैवानॉयड और एल्कलॉइड होते हैं, जो शरीर को नुकसान पहुंचाने वाले हानिकारक पदार्थों को शरीर से बाहर निकालने का काम करते हैं।
यह विभिन्न प्रकार के हानिकारक पदार्थों से लीवर की रक्षा करने का काम करता है और लीवर को स्वस्थ बनाए रखता है। भृंगराज (bhringraj uses) का एंटी-माइक्रोबियल गुण लीवर को हेपेटाइटिस सी जैसे वायरल संक्रमण से भी बचाता है।
चिरायता लीवर संबंधी समस्याओं के लिए रामबाण औषधि है, क्योंकि चिरायता में हेपटो -प्रोटेक्टिव गुण पाया जाता है जो कि लीवर को स्वस्थ्य बनाये रखने में मदद करता है। रक्त में अशुद्धियाँ या टॉक्सिन्स होने के कारण होने वाले रोग से परेशान है तो चिरायते का सेवन आपके लिए फ़ायदेमंद हो सकता है क्योंकि आयुर्वेद के अनुसार चिरायता में रक्तशोधक का गुण पाया जाता है। इसलिए चिरायता का सेवन रक्त के अशुद्ध से होने वाले रोगों के उपचार में फायदेमंद होता है।
मुलेठी पीलिया, हेपेटाइटिस और फैटी लिवर जैसे लिवर रोगों के इलाज में मदद करती है। इसके प्राकृतिक एंटी-ऑक्सिडेंट गुण विषाक्त पदार्थों के कारण जिगर के नुकसान से रक्षा करते हैं। इसके अलावा, मुलेठी हेपेटाइटिस के कारण जिगर की सूजन को शांत करने में मदद करती है।
Fatty Liver:
इनमे सामान्यत: लिवर का बढ़ना जिसे हम फैटी लीवर (Fatty Liver) भी कहते हैं शामिल है। इस प्रकार के रोग में लिवर की अग्नि कम हो जाती है, जो की अन्य वात और पित्त रोगों को जन्म देती है, जैसे की बुखार, कमज़ोरी आदि। यदि लिवर बहुत देर तक fatty रहता है तो ये आगे शरीर को मोटापा और डायबिटीज (टाइप 2) की और धकेल देता है।
ज्यादा मात्रा में शराब का सेवन भी fatty लिवर का प्रमुख कारण है।
Liver Cirrhosis पेट पर सूजन
सिरोसिस लिवर की एक गंभीर बीमारी है जिसमें पेट में एक द्रव्य बन जाता है (इस स्थिति को अस्सिटेस कहा जाता है) क्योंकि रक्त और द्रव्य में प्रोटीन और एल्बुमिन का स्तर रह जाता है। इसके कारण ऐसा लगता है कि रोगी गर्भवती है।
जब त्वचा रंगरहित तथा आँखें पीली दिखती हैं तब यह लिवर खराब होने का लक्षण होता है। त्वचा तथा आँखों का इस प्रकार सफ़ेद और पीला होना यह दर्शाता है कि रक्त में बिलीरूबिन ( एक पित्त वर्णक) का स्तर बढ़ गया है तथा इसके कारण शरीर से व्यर्थ पदार्थ बाहर नहीं निकल पाते।
द्रव प्रतिधारण (accumulation of fluid in body)
सामान्यत: तरल पदार्थ पैरों, टखनों और तलुओं में जमा होता है। इस स्थिति को ऑएडेम कहा जाता है जिसके कारण लिवर गंभीर रूप से खराब हो सकता है। जब आप त्वचा के सूजे हुए भाग को दबाते हैं तो आप देखेंगे कि उंगली उठाने के बाद भी बहुत देर तक वह स्थान दबा हुआ रहता है।
पेट में दर्द, विशेषत: पेट के ऊपरी दाहिने भाग में या पसलियों के नीचे दाहिने भाग में दर्द लिवर के खराब होने का लक्षण है।
शरीर में बहने वाले रक्त में बिलीरूबिन का स्तर बढ़ जाने के कारण मूत्र का रंग गहरा पीला हो जाता है, तथा जिसे खराब लिवर किडनी के द्वारा बाहर निकलने में असमर्थ होता है।
त्वचा में खुजली जो जाती नहीं है तथा त्वचा पर रैशेस (लालिमा) लिवर खराब होना का एक अन्य लक्षण है क्योंकि त्वचा की सतह पर पाए जाने वाले द्रव्य में कमी आ जाती है जिसके कारण त्वचा मोटी, छिलके वाली हो जाती है तथा त्वचा पर खुजली वाले चकत्ते आ जाते हैं।
लिवर खराब होने के कारण मल उत्सर्जन में बहुत परिवर्तन होता है जैसे कब्ज़, इरिटेबल बाउल सिंड्रोम या मल के रंग में परिवर्तन, काले रंग का मल या मल में रक्त आना।
पाचन से संबंधित समस्याएं जैसे अपचन और एसिडिटी के कारण लिवर खराब हो सकता है जिसके कारण उल्टियां भी हो सकती हैं।
लिवर खराब होने के कारण लिवर फेल भी हो सकता है तथा उपचार न करवाने पर भूख कम लगती है जिसके कारण वज़न कम होता जाता है। ऐसे मामलों में जहाँ रोगी बहुत अधिक अशक्त हो जाता है उन्हें नस के माध्यम से पोषक तत्व दिए जाते हैं।
लिवर खराब होने के बाद जब फेल होने की स्थिति में आता है तो चक्कर आना, मांसपेशियों की तथा दिमागी कमज़ोरी, याददाश्त कम होना तथा संभ्रम (कन्फ्यूज़न) होना तथा अंत में कोमा आदि समस्याएं हो सकती हैं।
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